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जादूई छुरी

एक मछलीवाला जिसका नाम रमेश था

अपने 18 साल के बेटे  नंदू के साथ रहता था

उसका मछली मार्केट में एक छोटी सी दुकान थी

 मछली बेचकर ही उसका घर चलता था दोनों बाप बेटा सुबह उठकर होलसेल मार्केट से मछली खरीद कर लाता

 और फिर बाजार में उसकी एक छोटी सी दुकान में मछली बेचा करता था

 उनका बहुत सारे ग्राहक थे

जो उनसे ही मछली लेते थे क्योंकि वह ताजी-ताजी मछली बेचा करता था और और दाम भी वाजिब लगाया करता था कुछ दिनों के बाद एक रोज मछली वाला रमेश बीमार पड़ जाता है

जिसके चलते नंदू को ही घर का काम और बाजार जा कर मछली लाकर बेचना पड़ता था

 नंदू की मां बचपन में ही नंदू को छोड़कर स्वर्गवास हो चुकी थी/ वह दसवीं तक पढ़ाई कर की /गरीबी के कारण कालेज की पढ़ाई भी नहीं कर पाया

गरीबी की वजह से वह पिताजी के साथ ही मछली बेचने का काम में हाथ बटाता था/

 अभी उसके पिताजी बीमार हो जाने की वजह से उसकी चिंता और बढ़ जाती है जिससे वह और दुर्बल हो जाता है

 नंदू के पिता बीमार रहने की वजह से  मछली लाने होलसेल मार्केट नहीं जा पाता था

 इसके लिए वह पास के ही मार्केट से थोड़ी बहुत ज्यादा कीमत पर मछलीया लाकर बेचने लगा था

 पर ग्राहक ज्यादा कीमत पर मछली नहीं लेने की वजह से धीरे धीरे कोस्टोमर उसके दूकान में आना बंद कर देते है

जिसके चलते दुकान उसको बंद करनी पड़ी /वह बहुत चिंतित रहने लगा और एक दिन नंदू के पिताजी की तबीयत बहुत ही खराब हो गई / यह देख नंदू पिताजी से कहता है

 पिताजी चलिए आपको मैं डॉक्टर के पास ले चलता हूं

 पिता कहता है

मैं डॉक्टर के पास जाऊंगा तो वह दुनिया भर के जांच पड़ताल करके फिर दवाई देगा जिसके बहुत ज्यादा पैसे मांगेंगे तुम कहां से ला कर दोगे

नंदू पिता के सर पर हाथ रखकर कहता है //

पिताजी आपको तो बहुत ही तेज़ बुखार  है

तब पिता कहता है

एक काम कर बेटा नंदू /गरम पानी कपड़े मे भीगा कर मेरे सर पर रख शायद थोड़ा बुखार कम हो जाए / नंदू पानी गर्म करके लाता है कपड़े पानी में डूबा कर माथे पर रखता है, कुछ देर गरम पानी की पट्टी

की सेंक माथे पर रखने से रमेश की बुखार

 धीरे धीरे थोड़ा कम होता है

तभी अचानक रमेश को कुछ याद आता है रमेश नंदू से कहता है

बेटा रसोई घर में पुरानी एक टोकड़े के पीछे कपड़े से लिपटी हुई एक छुरी रखी हुई है वह लाकर देना

नंदू रसोई में रखी हुईं छूरी ले आकर अपने पिताजी को देता है

रमेश उस छूरी को दिखाते हुए नंदू को कहता है

 बेटा जानते हो यह छुरी किसी एक फकीर ने मुझे दी थी , उसने कहा था कि बुरे वक्त पर यह छुरी तुम्हारा काम आएगा , अल्लाह चाहेगा तो ये छुरी तुम्हारी गरीबी को हमेशा के लिए मिटा देगी ,

 तुम्हारी मां गुजर जाने के कुछ दिनों तक मैं घर में परेशान रहा , और एक दिन मछली लेकर बाजार के बैचने जा रहा था तभी एक फकीर रास्ते में मुझे रोकते हुए कहता है

भाई इसमें क्या मछली लिए जा रहे हो

 मैंने कहा

हां

तो फकीर ने कहा

भाई कुछ मछलियां मुझे दो अल्लाह तुम्हें भला करेगा

रमेश सारी मछलियां थैली में डालकर उस फकीर को दे देता है , फकीर कहता है

मेरे पास तो ज्यादा पैसा नहीं है

रमेश कहता है

 रहने दो बाबा यह हमारे तरफ से तुम खा लेना , पैसे की कोई जरूरत नहीं है //

तभी फकीर खुश होकर अपने थैली में से यही चाकू जो कपड़े से लिपटी हुई थी वह निकालता है और आसमान की तरफ देखते हुए कुछ मन ही मन बोलकर

 और इस छुरी के ऊपर फूंक मार कर देते हुए कहता है

इसे तू अपने पास रख , यह तेरे बुरे वक्त में काम आएगा , तेरी गरीबी को मिटा देगी इसे तू सम्हाल कर रखना और हां अगर यह छूरी कोई दुसरे इंसान लालच में आकर इसका गलत इस्तेमाल किया ,

 तो उसका भयानक अंजाम उसे भुगतना पड़ेगा

यह कहते हुए बाबा ने मुझे वह छुरी दी थी

नंदू सुनकर आश्चर्य होता है ,

 और फिर रमेश छूरी को कपड़े से जैसे हटाता है तभी उसे झटका लगता है और वो खटिया से नीचे गिर पड़ता है

ये देख भागता हुआ नंदू पिताजी को  उठाता है फिर कहता है

 पिताजी आपके तो बुखार ही गायब हो गए

रमेश कहता है

 हां बेटा मुझे तो यह,  कोई जादुई छुड़ी लग रहा है  , बेटे मुझे अच्छा मेहसूस हो रहा हैं

 मेरी तबीयत अभी ठीक लग रहा है और अभी मुझे भुख भी लग रहा है

नंदू कहता है

 पिताजी अभी खाना चढ़ाता हूं

  तुम मुझे सब्जी लाकर दो मैं काटके देता हूं //

 रमेश भगवान से दुआ करता है हे भगवान मेरे अच्छे दिन ला दे/ तभी नंदू थाली में कुछ बैगन टमाटर और प्याज लाकर उसे देता है /

 रमेश कहता है

 बेटा आज मैं इस जादुई छुरी से सब्जी काटूंगा और वह एक बैगन जैसे ही बीच में से काटता है वह दो पीस बैगन सोने में बदल जाता है , और चमकता है , यह देख कर नंदू आश्चर्य हो जाता है ,

रमेश कहता है

अरे नंदू यह बैंगन तो सोने का हो गया चलो दूसरा देखता हूं टमाटर काटकर , और वह टमाटर हाथ में लेकर उसे छुरी से जैसे ही बीच में से काटता है,  वो दो पीस टमाटर भी सोने में बदल जाता है ,

और ऐसे ही प्याज को काटता है ,  वह भी सोने में बदल जाता है

रमेश यह देख कर कहता है

अरे वाह अब तो हमारी किस्मत बदल जाएगी , चलो बेटा पहले यह सारी चीजें लेकर हम मार्केट में ज्वेलरी वाले के पास चलते हैं

तभी एक थैली में वह सारे सोने के टुकड़े लेकर रमेश और नंदू दोनों सुनार की दुकान पर पहुंचता है

और थैली में से वह सारे पीस सोनार को देता है

 सुनार देखकर आश्चर्य होता है वह जांच पड़ताल कर कहता है

अरे ये तो सो टक्का सोना है , इसे बेचना है क्या

रमेश खुशी से कहता हैं

हां हां सेठजी

सेठ  उसको थैली भर के पैसा देता है

रमेश और नंदू वो पैसों कि थैली लेकर घर आ जाता हैं

और ऐसे ही रमेश और नंदू उस जादुई  छुरी से सोना बना बना कर सुनार को बेचकर आने लगा था

और देखते ही देखते रमेश पैसे वाला बन जाता है

उसके झोपड़ी आलीशान मकान में बदल जाता है उसके बंगले के बाहर नेमप्लेट पर , रमेश नंदू विला ,लिखा रहता है ,

उसके पास अब मार्सिडिस कार के साथ ड्राइवर भी है

नौकर चाकर भी है ,  बंगले के बाहर वॉचमैन भी हैं

रमेश और नंदू के पहनावे भी बदल जाता है , तरह-तरह के कीमती अच्छे ब्रांड के शूट टाई पहनकर बंगले के बाहर कार में जाने लगता तो वॉचमेन दोनों को सैल्यूट मारता

 उनके घर के अलमारी में महंगे जूते ज्वेलरी के बॉक्स , रंग बिरंगे कपड़े , अलमारी में खचाखच भरा हुआ दिखता है रमेश अपनी जिंदगी से खुश है

वह शहर में कई फैक्ट्री की मालिक भी बना जाता है

उस शहर के नामी सेठ बन जाता है

वो वाहा के गरीब लाचार लोगों को पैसे देकर मदद करता है

 तभी एक दिन नंदू रमेश से कहता है पिताजी मैंने दसवीं तक की पढ़ाई की थी गरीबी और पैसे के कारण मैं कॉलेज नहीं जा पाया था

 अब मुझे कॉलेज में आगे की पढ़ाई करनी है , यह सुनकर रमेश कहता है

 ठीक है बेटा तुम कॉलेज में एडमिशन ले लो

और एक दिन नंदू कॉलेज में एडमिशन ले लेता है , कॉलेज में पढ़ाई के कुछ दिनों बाद उसकी दोस्ती रीता नाम की एक अमीर घर की लड़की से दोस्ती हो जाती है,

 रीता से उसका मेलजोल बढ़ जाने पर उसे अपने घर ले आता है और अपने पिताजी से मिलवाता है , रमेश रीता को देख खुशी होता है

वह रिता से पूछता है

बेटा तुम बड़ी खूबसूरत हो तुम्हारा अपना परिचय बताओ

रीता बताती है

जी अंकल मेरे पिताजी का नाम अवधेश शर्मा है , आपने उनका नाम सुना होगा वह हमारे इस एरिया यानी कि शंकरपुर के विधायक हैं

रमेश सुनकर खुश होते हुए कहता है

वाह बेटा तुम अवधेश शर्मा की बेटी हो बहुत अच्छा , आते रहो मेरे घर ,ठीक है नंदू रिता को  चाय नाश्ता करवाओ, मैं ऑफिस के लिए निकलता हूं

और ड्राइवर के साथ रमेश कार में बैठकर चले जाता है

और इसी तरह कुछ दिनों बाद रीता फिर से एक बार नंदू के साथ नंदू के घर आती है नंदू रीता को कहता है

आज मैं तुम्हें एक बहुत ही बड़ा सरप्राइस चीज दिखाऊंगा

और फिर वह अलमारी से जादुई छुरी ले आता है और टेबल में रखी एक एप्पल उठाता है और रीता के सामने ही उसे बीचो-बीच उस जादुई छुरी से एप्पल को काटता है

वह एप्पल के दो पीस सोने में बदल जाता है यह देख रीता आश्चर्य हो जाती है

 फिर कहती है

अरे नंदू यह तो कमाल हो गया यह तो सोने का बन गया

 नंदू कहता है

हां रीता यह जादुई छूरी है , इससे तुम जो भी काटोगी वह सोने का बन जाएगा

और वह सारे कहानी उस जादुई छूरी के बारे में बता देता है

रीता के मन में लालच आ जाता है और वह एक दिन के लिए वह छूरी अपने साथ ले जाने के लिए मांगती है

 नंदू उसे दे देता है , रीता खुशी-खुशी कार में बैठकर जा रही होती है , कि अचानक वो सोचती है कि देखता हूं मैं भी की इस छुरी से एप्पल काटने से सोने में कैसे बदलता है

और वह रास्ते में एक फल वाले की दुकान के पास कार को रोकती है

कार से उतर कर वह फलवाले से एप्पल लेती है और कार में आकर बैठती है और छूरी से एक एप्पल को जैसे बीच में से काटती है

तभी पीछे से एक ट्रक आकर उसके कार को एक्सीडेंट कर उड़ा कर निकल जाता है,  कार पलटी खाकर उसमें आग लग जाती

और रीता कार के अंदर ही जलकर मर जाती है

तो देखा भाइयों लालच की यही अंजाम होता है , रीता एक पैसे वाली की बेटी थी फिर भी उसने लालच में ऐसा किया जो उसका अंजाम उसे भुगतना पड़ा

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