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भुलक्कड़ मछवाड़े

ढोला गांव में एक गरीब मछवारे का परिवार रहता था // मछवारे का नाम निमाईं था और वो महा भुलक्कड़ था //

उसकी पत्नी का  नाम राधिका थी //और एक बेटा / जिसका नाम भोलू था

जो वो  भी उसके बाप के तरह ही भुलक्कर था //

 

 एक दिन निमाइ मछली पकड़ने नदी में जाता हैं

बहुत मेहनत से वो मछली पकड़ने के बाद घर आता है और जाल लाना वोही भुल जाता है/ उसके माथे पर टोकरा था पर साथ में जाल नही था

ये देख उसकी पत्नी राधिका कहती है

 

क्यू जी लगता है आज भी जाल नदी मे छोड़ आए  हो // ये मिलाकर अबतक तुमने 20/से 25 जाल भूलकर छोड़ आए हो // तुम्हारे भुलक्करी की वजह से हमलोग गरीब की गरीब ही रह जायेंगे

तभी भोलू आके कहता है

मम्मी तुम चिंता न करो // देखना बहुत जल्द तुम्हारा ये बेटा इस घर की गरीबी दूर कर देगा

 नरेशन // ये सुन कर निमाईं गुस्से से कहता हैं

बहुत बडी बडी बाते करता है // पढ़ाई के डर से तो तूने स्कूल जाना भी छोड़ दिया // जाहिलो के तरह दिनभर निठल्ले घुमता रहता है

 ये सुनकर भोलू रोते हुए कहता हैं

देखा मम्मी मुझे ज़ाहिल कह रहे हैं

तभी राधिका कहती हैं

देखो जी तुम मेरे बेटे को डाटा मत करो

निमाई कहता है

ठीक है _ठीक है अब तुम ये मछली शहर वाले  बाज़ार में जाकर बेच आओ //

भोलू मछली बैचने चला जाता हैं //

और निमाई कहता है

मैं नदी में जाल ढूंढ कर आता हूं// शायद मिल जाए

ये सुनकर राधिका कहती है

 पहले तुम मेरे साथ चलो मार्केट

 वहां से कुछ समान लानी है खाने पीने की//

 और फिर दोनों मार्केट जाते हैं// वहां एक दुकान में राधिका समान खरीद ने में व्यस्त हो जाती है और इधर निमाई अपने आप से कहता है

 अरे यार मुझे नदी में जाना था और मैं मार्केट मे आ गया// मैं भी ना बहुत बड़ा भुलक्कड़ हूं //

और वो राधिका को बिना बताए नदी के तरफ़ चला जाता हैं और इधर कुछ देर बाद राधिका पलट कर देखती है पति गायब है// वह मन ही मन कहती है

ये फिर अचानक कहा चला गया//भुलक्कड़ कहीं के, यह आदमी कब सुधरेगा पता नहीं //मेरे पास पैसे भी नहीं है उन्हीं के पास पैसे थे//

 और फिर मन मसोसकर कुछ लिए बिना खाली हाथ मार्केट से घर चली आती हैं

 नरेशन //

इधर निमाईं नदी में जानें की बजाए एक घने जंगल के रास्ते में घुस जाता हैं //डरवानी  घने जंगलों में जाकर वो भटक जाता हैं और कहता है

नदी जाने के बजाए इस जंगल में कैसे आ गया मै

और फिर वो चारों तरफ नजरे घुमा कर देखता है जंगल ही जंगल दूर दुर तक // कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था उसे

वो कहता है //

 अब किया होगा / अब घर कैसे जाऊंगा

 और उधर भोलू मछली के टोकरा लिए गांव से गुजर रहा था आवाज़ देते हुए//

मछली ले लो/ ताजा ताजा मछली होल सेल रेट से

तभी एक 40 साल का एक लड़का  आके कहता है

भाई ये टोकरे मे जितना भी मछलीया हैं वो पूरा चाहिए कितने मे दोगे// हम गरीब लोग है // ज्यादा पैसा नही दे पायेंगे //

भोला पुछता है

कियू  भाई आपके घर कोई प्रोग्राम है

लडका कहता है

हां भाई हम बंगाली परिवार से हैं//

 हमारी कौम में कोई भी घर में फंक्शन हो तो मछली मेहमानों को खिलाना शुभ माना जाता हैं और आज मेरे पिताजी की श्राद्ध भोज हैं

भोला कहता है

आप ये सारा मछली ले ले हमें पैसे नहीं चाहिए// ये तो बहुत बड़ा पुण्य का काम है

नरेशन // और भोला सारा मछली उस लड़के को देकर चला जाता है//

उधर निमाईं जंगोलो में रास्ता ढूंढते ढूंढते  काफ़ी थक जाता हैं और वो भुखे प्यासे थक हार कर वोही  एक पेड़ के पास बैठ जाता हैं//

इधर भोला खाली टोकरा लिए घर लौटता है

राधिका कहती हैं

 मछ्ली बेचकर खाली हाथ आया है // राशन नही लाया ??

भोला कहता है

जानती हो मम्मी // आज हमने बहुत बड़ा पुण्य का काम किया है // एक गरीब लडके के पिताजी का घर में श्राद्ध भोज था

उसे लोगों को खिलाने के लिए मछ्ली चाहिए थीं// मैंने सारी मछली उनको दे दिया बिना एक भी पैसे लिए //

 राधिका कहती है

पर अभी खाना कैसे बनेगा और तेरे पिताजी मुझे बाजार में छोड़ कर ना जाने कहा चले गए // अब तक नहीं आए हैं

शाम होने को है //

वैसे भी तेरे पिताजी भुलक्कड़ स्वभाव के है //

और उधर निमाईं  पेड़ के नीचे बैठा सोचता है// उसके भुलने की बीमारी की वजह से आज मौत के मूंह में आकर फस गया // नरेशन // तभी एक कौआ उसी पेड़ मे आके बैठ जाता हैं और अपने चोंच से एक चमकता गोल पत्थर निमाई के पास गिराता है

निमाइ चौक कर उस पत्थर को उठाता है और फिर ऊपर कौआ के तरफ़ देखता है

कौआ इंसानी आवाज़ में कहता है

 

निमाईं तेरे बेटे की दी हुई मछली खा कर मेरी आत्मा बहूत ही संतुष्ट हुईं /

 तुम्हारे पुरे परिवार बहुत दयालु स्वभाव के हैं //दूसरों की काफी मदद की हैं  तुमलोगो ने //बहुत नेक काम किया हैं

इसलिए तुम्हें वरदान दे रहा हूं इस पत्थर को देकर तुम इसे संभाल कर रखना

यह बोलकर कौवा उड़ जाता है निमाई पत्थर को देखकर कहता है //

है पत्थर देवता मुझे घर का जाने का रास्ता दिखा// मैं भुलककर इन्सान हूं //

मेरी याददाश्त तेज कर दे // इस बीमारी की वजह से आज तक मुझे काफी नुकसान उठाना पड़ा

 बहुत गरीबी में/ तकलीफ में /अपनी जिंदगी चल रही है// हमें सुखी कर दे //खोया हुआ सब चीज लौटा दे //

तभी निमाई देखता है अचानक जंगल से सीधा बाहर जाने का रास्ता दिखाई दे रहा हैं और वो चल पड़ता है उसी रास्ते के तरफ

और फिर वो जंगोलो के बीच से बाहर आ जाता हैं

और फिर उसे अपना गांव दिखाई देता हैं

अपने घर के तरफ़ चल पड़ता हैं // घर आकर देखता हैं

उसका टूटा फूटा मकान के जगह एक आलिशान घर बना हुआ हैं

ये देख वो खुश हो जाता है औरअंदर जाता है तभी राधिका दौड़ कर आती है और उसका बेटा भी

दोनों खुश हैं राधिका पति से कहती है

 

ये सब अचानक कैसे हो गया हमलोग अमीर बन गए

निमाइ जेब में से पत्थर निकालते हुए कहता है

ये सब इस जादुई पत्थर का कमाल हैं हमारे दान धर्म करने की पुण्य की वजह से// मैंने जो भी इस पत्थर से मांगा वो हमें दिया // देखना चाहती हो तो तुम भी इस से अभी कुछ मांग कर देखो

मांगती हूं पहले तुम सुनो

तभी राधिका कहती है

जानते हो आज तुम्हारा बेटे ने सारी मछली किसी को फ्री में देकर आ गया // निमाई कहता है

और  उसी मछ्ली के कारण हमें ये जादुई पत्थर मिले

श्राद्ध भोज में जो कौआ मछली खाया था वो एक सिद्ध पुरुष की आत्मा थी और उसी की के कारण ये सब हुआ//

 और उसने कहा है इस पत्थर को जो तुम बोलोगे वो तुम्हारी मांग पूरी करेगा

और फिर राधिका कहती है

हे पत्थर के देवता// घर में खाना दे दो

तभी अचानक गेहूं चावल की ढेर सारी बोरिया आ जाती हैं // कई टोकरे में सब्जी और थाली में खाने के सामान आ जाता हैं// और फिर वो गांव के दुखी मजबूर लोगों की उसी जादुई पत्थर के द्वारा मदद करने लगा

नरेशन

तो देखा भाइयों / दूसरों की भला करोगे तो तुम्हारा भी भला होगा //जैसे निमाई के परिवार को हुआ //

देर सवेर अपने अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है

 The 🔚