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तिरूपति बालाजी की कहानी
द्वापर युग कृष्ण भगवान का यूग समाप्त होने के बाद कलयुग की प्रारंभ होने वाला था //
अब कलयुग में धरती पर जीव जंतु इन्सान इन सभी को कौन इसका रखवाला करेगा
उस को लेकर सात ऋषि मुनी लोग हिमालय में यज्ञ हवन मे शामिल होते हैं और सभी मंथन करते हैं//
की किस भगवान को कलयुग में धरती का भार दिया जाए
सभी मे विचार-विमर्श होने के बाद यह फैसला होता है कि ब्रह्मांड में तीन देवता हैं ब्रह्मा/ विष्णु /महेश //
अब तीनों में से जो सर्व श्रेष्ठ होगा उन्हें ही यह कार्य भार सौंप दिया जाएगा
और सातों ऋषि-मुनियों ने भृगु ऋषि मुनि को तीन देवताओ में से किसे चुनना है
उसके लिए भृगु ऋषि का चयन करते है//
और फिर भृगु ऋषि मुनि सबसे पहले ब्रह्मलोक मे ब्रह्मा जी के पास जाते है//
भगवान ब्रह्मा अपने दरबार में सभा लगाए हुए थे // वो माता सरस्वती के साथ
बातों में मशगुल थे// तभी भृगु ऋषि मुनि उस भरी सभा में प्रकट हुए //वो बहुत देर तक खड़े रहे //
लेकिन ब्रह्मा जी ने उनको अनदेखा कीया //
यह देख भृगु ऋषि मुनि बहुत क्रोधित हो गए// उन्होंने कहां कि
हे ब्रह्मा तुमने हमारा अनदेखी करके मेरा अपमान किया है
ब्रह्मा जी कहते हैं
मुनिवर क्षमा कीजिए //क्षमा कीजिए // पर आपका अपमान करना मेरा उद्देश्य नहीं था//
भृगु ऋषि कहते है
असंभव असंभव तुम्हें क्षमा नहीं //
मैं तो तुम्हें जगत का भार संभालने देने के लिए आया था
पर तुमने मेरा घोर अपमान किया// मैं तुम्हें श्राप देता हूं
आज से भूलोक में तुम्हारी कोई पूजा नहीं करेगा //
ये बोलकर वो कैलाश पर्वत पर शंकर भगवान जी के और प्रस्थान करने निकल पड़ते हैं
शंकर भगवान के घर के बाहर गणपति जी बैठे हुए थे //भृगु ऋषि मुनि गणपति जी से पूछता है
तुम्हारे पिताजी कहां हैं
तो गणपति जी कहते हैं
पिताजी और मेरी मां दोनों घर के अंदर सो रहे हैं
यह सुनकर भृगु ऋषि मुनि क्रोधित हो गए फिर कहते हैं
ईतनी भरी दोपहर में तुम्हारे पिता सो रहे है //
यह क्या भूलोक की देख भाल करेगा
बोलकर
वो विष्णुजी से मिलने बैकुंठ धाम निकल पड़ते हैं //
आसमान से उड़ते हुए वो देखते हैं
के शेष नाग के ऊपर आराम से लेट कर भगवान विष्णु पत्नी लक्ष्मी मां के साथ वार्तालाप में मग्न थे
यह देखकर पहले ही दो बार अपमानित हुए भृगु ऋषि और भी क्रोधित हो गए
और उन्होंने अपनी बाई पैर से विष्णु जी के सीने पर तीव्र प्रहार किया
विष्णु जी ने आदर से उनके चरणों को पकड़ लिया और सहलाते हुए नम्र होकर कहा //
क्षमा करें मुनिवर मेरी छाती पर प्रहार करके आपको कष्ट हुआ होगा // आपको जो कष्ट हुआ उस से हम क्षमा चाहते हैं//
विष्णु जी की बातें सुनकर भृगु ऋषि मुनि को क्रोध कुछ कम हुआ //
फिर भृगु ऋषि कहते हैं
आपको धरती लोक में सभी जीव जन्तु प्राणी की रखवाली के लिए जिम्मेदारी देने आया हूं //
आप धरती लोक में सर्व श्रेष्ठ देवताओं में जानें जाओगे //और उन्होंने निर्णय लिया की यज्ञ का फल हमेशा विष्णू जी को समर्पित होगा //
ये कहकर भृगु ऋषि विष्णु लोक से धरती लोक पर आकर यज्ञ में मुनियों के साथ शामिल हो गए
इधर भृगु ऋषि जाते ही माता लक्ष्मी क्रोध स्वर में बोली
हे स्वामी धरती वासी भृगु ऋषि मुनि को// आपके सीने पर ठोकर मारने को अधिकार किसने दिया और आप भृगु को दंडित करने की अपेक्षा उनसे उल्टा क्षमा क्यों मांगी //
यह सुनकर विष्णु जी मौन रहे और सैया पर लेटे रहे //परिणाम स्वरूप लक्ष्मी जी विष्णु जी को त्याग कर भूलोक में चली गई//
यह देख विष्णु जी लक्ष्मी जी को बहुत ढूंढा पर कही भी नहीं मिले
और विष्णु जी को लगा कि भूलोक पर तो माता नहीं चली गई// यह सोचकर विष्णु जी भी भूलोक पर आ गए
और फिर कुछ दिनों के बाद नारद मुनि
हिमालय में माता लक्ष्मी के वहां पधारते हैं और मां लक्ष्मी से कहते हैं कि //
हे मां तेरा पति तुझे छोड़कर तेरे आज्ञा बिना वह धरती लोक में मानव की देखभाल के लिए चले गए //
इस पर महालक्ष्मी कहती है
नारद मुनि जी मेरा नाम मां लक्ष्मी है //इस कलयुग में मेरे बिना कुछ भी नहीं हो सकता //
इंसान का जन्म से लेकर मरन तक मेरी ही जरूरत पड़ेगी याने की मां लक्ष्मी का मतलब हैं पैसे धन और पैसे के बिना इंसान एक पल भी जी नहीं सकता
जीने के लिए भी उसे पैसे चाहिए और मर जाने के बाद भी जलाने के लिए लकड़ी के लिए पैसे चाहिए//
ये सुनकर नारद मुनि जी
नारायण नारायण कहते हुए वाहा से प्रस्थान कर गए
नरेशन // भगवान विष्णु धरती पर आते हैं मनुष्य रूप में //
क्योंकि कोई भी देवता जब धरती पर आते हैं तो उनका देवता का गुण समाप्त हो जाती है
भगवान विष्णु भी साधारण इंसानों की तरह जंगल में भटक रहे थे
तभी उन्हें भूख और प्यास लगी
के तभी उनका नजर एक कुटिया पर जाती है //वह वहां जाकर आवाज लगाता है //
मुझे कुछ खाने को दे दो //बड़ी भुख लगी है//
तभी अंदर से एक बुढ़िया बाहर आती है और वह पूछती है
कौन हो बेटा
भगवान विष्णु कहते हैं
मैं कहां से आया यहां // कैसे आया मुझे खुद पता नहीं //मुझे भूख लगी है
तो बुढ़िया बोलती है
तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए पानी और खाना ले आती हूं
और वह कुछ ही देर बाद खाना और पानी लाकर विष्णु भगवान को देती है और कहती है
कि मेरा कोई नहीं है इस संसार में// तू मेरा बेटा बनकर यहां रहो और मेरी कुछ गाये हैं उसकी देखभाल करना//
और तभी से भगवान विष्णु बुढ़िया का बेटा बनकर रहने लगता हैं//
जिस जगह बुढ़िया का घर था उसी राज्य के राजा के घर एक पुत्री की जन्म हुई//
जिसका नाम करण के लिए राज ज्योतिष को बुलाया गया
बूढ़े ज्योतिष राजा की पुत्री की चेहरा को देख कहते है
हे राजन तू बहुत भाग्यशाली है // तेरी पुत्री माता लक्ष्मी के रूप में तेरे घर जन्म लिया हैं
तेरी पुत्री का नाम पद्मावती रखा मैंने
ये जब बड़ी होगी तो इसकी जिंदगी में जो भी लड़का आएगा
ये जिसे पसंद करेगी / समझ लेना वो भगवान विष्णू जी की ही स्वरूप हैं
तुम उससे ही शादी करवा देना
ये सुनकर राजा बहुत खुश हुए कियूकी राजा खुद भगवान विष्णु जी के बहुत बड़ा भक्त थे
और सभी राज दरबारी खुशी और आश्चर्य से नन्हीं राजकुमारी को देखने लगे
और देखते देखते राजकुमारी पद्मावती जवान हो गई
एक दिन की बात है राजकुमारी पद्मावती अपनी सहेलियों के साथ तालाब में स्नान करने गई थी // वोही भगवान विष्णु गायों को वोही चढ़ा रहे थे के तभी पद्मावती की नज़र भगवान विष्णु पर पड़े और वह उनके चेहरे से निकलती चमक से आकर्षित हो गई
और फिर घर पर जाकर अपने पिता राजा को बताया के मैं गांव की बुढ़िया के बेटे के साथ शादी करना चाहती हूं
राजा अपने मंत्रियों को बुढ़िया की खोज खबर लेने भेजा और कुछ दिनों बाद राजा
निर्णय लिया के बुढ़िया के बेटे से शादी पक्की करने की
और फिर राजा अपने मंत्रियों के साथ बुढ़िया के घर पहुंचते हैं
बुढ़िया राजा को देखकर आश्चर्य होती है राजा बुढ़िया को नमस्कार करते हुए कहता है //
कि तुम्हारा जो बेटा है उससे हमारी बेटी पद्मावती के साथ शादी करवानी है
यह सुनकर बुढ़िया कहती हैं
वह मेरा बेटा नहीं है और वह कहा से और कैसे आया यह खुद उसे भी पता नहीं
राजा कहता है
कोई बात नहीं है आप चिंता ना करें शादी की सारी खर्च हम करेंगे और धूमधाम से करेंगे
कहकर राजा चले गए और यह खबर पूरे राज महल से लेकर सारे राज्य की जनता को पता चल जाती है //और फिर यह बातें देवलोक में भी पहुंच जाती है // ये ख़बर नारदजी ने ब्रह्मा और शंकर जी को सुनाया भगवान विष्णु की शादी धरती लोक में होने जा रही है
तभी भगवान ब्रह्मा और भगवान शंकर जी दोनों मिलकर डिसाइड करते हैं
की शादी में हमलोगों को जाना चाहिए
शादी धूमधाम से हो
इसके लिए कर्जा लेने के लिए वह दोनों कुबेर भगवान के पास होते हैं
और उनको सोने का हाथी सोने की घोड़े सब मांगते हैं // कुबेर भगवान बोलते हैं// ठीक है तुम ले जाओ
लेकिन यह सारी चीजों का कर्ज़ पूरे कलयुग तक बनी रहेगी //और फिर शादी के दिन भोलेनाथ और ब्रह्मा जी और सारे देवताओं के साथ भगवान विष्णु की शादी में बाराति बनकर सोने के हाथी घोड़े लेकर पहुंच जाते हैं
राजा के दरबार में शादी होने लगती है तभी हिमालय में तप करती हुई माता लक्ष्मी के पास नारद मुनि पहुंचते हैं और कहते हैं// माता तू इधर ध्यान कर रही है और उधर तेरे पति दूसरी शादी रचाने जा रहा है
तू चल जल्दी मेरे साथ
और फिर दोनों निकल पड़ते हैं धरती लोक में
तब तक सात फेरे लग चुकी थी के तभी माता लक्ष्मी वोहा पहुंचती हैं और कहती है मेरे रहते आप दूसरी शादी कर ली
भगवान विष्णू कहते है
कोई बात नही आज से माता लक्ष्मी मेरे दायी भुजा में और पद्मावती मेरे बाई भुजा में विराजमान रहेगी
और तभी भगवान विष्णु दोनों के साथ मूर्ती में तब्दील हो जाते हैं
जिसे हमलोग तिरुपति बालाजी के नाम से जानते है और पुजा करते हैं
The 🔚 समाप्त