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महाकंजुस की मौत

गोपालपुर गांव में दयाराम नाम का एक कंजुस सेठ रहता था , उसका उम्र 65 का था , उसकी पत्नी का नाम सावित्री था ,

आए दिन सावित्री बीमार रहती थी

दयाराम के एक बेटे और दो बेटियां थीं ,

बेटे का नाम अजय जो पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश कर रहा था, और दयाराम के दो बेटियां पढ़ाई कर रही थी

दयाराम सुबह उठकर नहा धोकार धुआं दीप से भगवान की आरती से पहले वो अपनी तिजोरी की पूजा किया करता था , धुप अगरबत्ती तिजोरी में रखी ढेर सारी नोटों की बंडोलो की आरती कर नोटों को माथे पर लगा कर रखता था

एक बार सावित्री देवी बहुत ज़्यादा बीमार पड़ जाती हैं वो बिस्तर पर लेटी करहरते हुए कहती हैं

सुनो जी कई दिनों से बिस्तर में पढ़ी हूं डाक्टर बुला दो , ना जाने आज तबियत बहुत ही खराब लग रहा हैं

दयाराम कहता हैं , डाक्टर को दिखाया कितना तुम्हारे पीछे मेरे कितने पैसे बर्बाद हो गया

जानती हो मेरे दादी कितनो भी बीमार पड़ जाती थी , पर ना कभी डाक्टर के पास गयी और ना किसी तरह की दवाई खाती थी और दादाजी कभी दवाई जबरदस्ती खिला भी देते तो वो उल्टी कर देती थीं

पूरे 90 साल तक जीवित रही ,

और एक तुम हो 12 महिने दवाई चाहिए टेबलेट कैप्सूल तो तुम ऐसे निगलते हो जैसे चना मुमफली की दाने

और दयाराम ऐसे ही बड़बड़ाता हुआ घर से बाहर निकलने लगता है कि तभी बडी लड़की रीमा आके कहती हैं

पिताजी मेरी स्कूल की फीस आज भरनी है

दयाराम गुस्से से कहता है

कुछ दिन पहले तो हमसे पैसे लिए थे, हर दस दिन में फीस देने पड़ेंगे तो पढ़ाई छोड़ दो , हमने भी पढ़ाई की हैं , मेरे ज़माने में कोई फीस नहीं भरनी पड़ती थी

दयाराम कहता है

शाम को देता हु , तुम्हारे फीस के लिए कुछ उल्टा पुल्टा करना पड़ेगा

के तभी अजय आता है और कहता है ,

पिताजी कुछ रूपये दो , इंटरव्यू देने जाना है ,

दयाराम गुस्से से कहता है

एक साल से तुम नौकरी ढूंढने के लिए हमसे करीब एक लाख रूपए ले चुके हो

तुम नौकरी छोड़ो और अपने धंधे में हाथ बटाओ

अजय कहता हैं , नही आपके साथ नहीं करूंगा , मैं खुद का बिज़नेस करुंगा, आप मुझे पांच हज़ार दे , उससे मै मेंबर बनाने वाली बिज़नेस करुंगा, जितना मेंबर बनाऊंगा उतनी मेरी कमाई होगी ,

दयाराम कहता हैं , ये कौन से बिज़नेस है

ठीक ये लास्ट मौका दे रहा हुं और फिर दयाराम तिजोरी में से रूपये निकाल कर उसे देता हैं , और गुस्से से बड़बड़ाते हुए

वो बाहर निकल जाता है ,

दयाराम राम के मार्केट में अनाज के होलसेल गाला है

दुकान के बोर्ड पर लिखा है , //दयाराम थोक भंडार ,//

दयाराम दुकान पर आके बैठता है , मुंशी और एक नौकर है , मुंशी दयाराम से कहता है , मालिक आज गोडाउन से पचास बोरी चावल और तीस बोरी गेंहू अच्छी वाली क्वालिटी की रामलाल को डिलिवरी भेजवानी हैं , मैने वो माल अलग से मंगवा कर रखा है , अन्दर मे हैं ,

दयाराम कहता हैं , अच्छा ठीक है ,

दयाराम कुछ सोचता हैं , और अपने मन में कहता है , बेटी की फीस देनी है और सावित्री को डॉक्टर भी दिखाना है

ये पैसे इसी की माल से निकालना पड़ेगा

थोड़ी सी बैमानी ही सही

और वो सैंपल निकालने वाली औजार लेके अंदर जाता हैं और हर एक बोरी से ढेर सारा अनाज निकाल लेता हैं

शाम को दयाराम डॉक्टर को साथ लाता है सवेत्री का डॉक्टर चेकअप करके दयाराम से कहता है

इन्हें मियादी बुखार है और खुन की भी कमी हैं

मैं कुछ दवाई लिख कर देता हूं पुरे दस दिन की ये आप मेडिकल स्टोर से मंगवा लीजिए

और इन्हें बाजार से फल फ्रूट मंगाकर खिलाइए , और दूध दीजिए दो टाईम सुबह और रात  को

जिससे इनका खून बढ़ेगा

दयाराम को दवा लिखकर डॉक्टर देता है और फिर डॉक्टर का फीस देता है,

 डॉक्टर जाता है दयाराम अपने मन में कहता है

अभी फ्रूट मार्केट में कितना महंगा है एप्पल दोसौ रूपये किलो , पपाया एक का सौ रुपइया,  इतना महंगा फल आज के महंगाई मेकौन खाता है खाने

ये सब डॉक्टरों का नौटंकी है और फिर  मियादी बुखार तो नॉर्मल होता है अपने आप ही ठीक हो जाएगी

और फिर दयाराम सावित्री के लिए ना दवाई लाता है और ना ही फल फ्रूट,  जिससे सावित्री की तबीयत दिन ब,  दिन और भी बिगड़ती चली जाती है

और फिर 2 दिन बाद सावित्री दम तोड़ देती हैं ,

सावित्री के मर जाने पर भी दयाराम को कोई अफसोस नहीं होता है वह कहता है चलो दवाई से निजात मिल गई अब पैसे की बचत होगी दयाराम अंतिम संस्कार करके घर लौटता है

 कुछ दिनों बाद तेहरवी के लिए पंडित दयाराम से मिलने आता है और पुजा विधि का लिस्ट देते हुए कहता हैं ,

ये सारा सामान मंगवा लीजिए और मेरा दक्षिणा दो हजार

दयाराम सुनकर गुस्से से कहता है

पंडित जी मै आपका दक्षिणा और ये सारा समान का आपको आड़ाई हजार देता हूं आप ही लेके आना

पंडित जी कहता है , इतनी महंगाई मे इतने कम पैसे से सामान कहा से आएगा

दयाराम कहता हैं , जैसे भी करना है कर दीजिए वो बोलकर चला जाता हैं

दूसरे दिन गांव के लोग तेहरवीं की भोज खाने आता है , उनमें से एक चोर भी होता है ll

दयाराम पूजा में बैठा है ये देख चोर चुपके से अलमारी के पास जाके किसी ओजार से अलमारी की लॉक खोल कर सारा रुपइया और ज़ेवर थैली में भरकर चोरी कर भाग जाता हैं

थोड़ी देर बाद दयाराम जैसे अलमारी के पास आता है , अलमारी खुला देख वो चीखता है और वोही गिर पड़ता हैं

चीख सुनकर सारे गांव वाले आ जाते हैं दयाराम को उठाने की कोशिश करता है पर दयाराम अपना दम तोड़ चुका होता है

 

 Il  तो देखा भाइयों कंजूसी का नतीजा  ll

               Il The 🔚 ll